________________
७३
प्रतिसेवाविकार।. परिधारण करने आदिका पंचकल्याणक प्रायश्चित्त है ॥११६॥ . मैथुने रात्रिभुक्तौ च स्वस्थानं परिकीर्तितं । स्त्रियोः संधी प्रसुप्तस्य मनोरोधान दूषणं ।११७॥
अथे--उपसर्गवश मैथुन सेवन करने आर रानिमें भोजन करनेका मायश्चित्त पंचकल्याणक कहा गया है। यह प्रायश्चित्त उसके परिणामोंकी जातिका विचार कर देना चाहिए। तथा. दो स्त्रियोंक वीचमें सोये हए साधुक लिए मनको रोकनेके. कारण कोई दूपण नहीं है। भावार्थ-ऐसा माका पाजाय कि दोनों तरफसे दो स्त्रियां सोई हुई हैं और वीचमं आप सोया हुआ हो, पर पनमें कोई तरहका विकार भाव उत्पन्न नहीं हुमा हो तो उस साधुके लिए कोई प्रायश्चित्त नहीं है ॥१२॥ आवश्यकमकुर्वाणः स्वाध्यायान् लघुमासिकं । एकैकं वाप्रलेखायां कल्याणं दंडमश्नुते ॥११॥ __अर्थ-जो साधु सामायिक, चतुर्विंशतिस्तव, वंदना, प्रतिक्रमण, प्रत्याख्यान और कायोत्सर्ग इन छह आवश्यक क्रियामोंको और दो स्वाध्याय दिनके और दो रातके एवं चार तरहके स्वाध्याओंको न करे तो वह लघुमास प्रायश्चित्तको प्राप्त होता है तथा इन छह आवश्यक क्रियाओंमेंसे एक एककोन करे भोर.संस्तर उपकरबादिका प्रतिलेखन न करे तो कल्या एक प्रायश्चित्तको मात होता है.।।, ११।।