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३-कालाधिकार। .. अब कालका वर्णन करते हैं, शीतः साधारणो धर्मस्त्रेधा कालः प्रकीर्तितः। उत्कृष्टं मध्यमं नीचं तत्र भाज्यं तपो भवेत् ।१३०॥
अर्थ-काल तीन प्रकारका कहा गया है। शीतकाल, वर्षा-, काल और ग्रीष्मकाल । इन तीनों कालोंमें उत्कृष्ट, मध्यम और जघन्य उपवासादि तप देना चाहिये ॥ १३०॥
कौनसे कालमें कौनसा उत्कट तप देना चाहिये यह बताते हैंवर्षासु द्वादशं देयं दशमं च हिमागम।
अष्टमं ग्रीष्मकाले स्यादेतदुत्कर्षतस्तपः । १३१॥ ___ अर्थ-वर्षाकालमें द्वादश-पांच उपवास, शीतकालमें दशम'चार उपवास और ग्रीष्मकालमें अष्टम-तीन उपवास व्यवधानरहित देने चाहिये। यह उत्कर्ष तप है ॥ १३१॥ .
* आगे मध्यम तप कितना देना चाहिए यह बताते हैं. वर्षासु दशमं देय अष्टमं हिंमागमे । षष्ठं स्याद् ग्रीष्मकालेऽपि तप एतद्धि मध्यमं ॥
अर्थ-वर्षाका में दशम-चार उपवास शीतकालमें अष्टम