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प्रायश्चित-समुच्चय । तरहकी भूतकोड़ा दिखाना। इन सब क्रीडाभोंको करते हुए यदि स्वपक्ष अपने धर्मावलंबी देखलें तो पुरुमंडल प्रायश्चित्त देना चाहिए और यदि विधर्मी लोग देख लें तो कल्याणक प्रायश्चित्त देना चाहिए ॥ १३-१४॥ मनसा काममापन्ने निंदातीवाभिलाषिणि । मासो मैथुनमापन्ने चतुर्मासा गुरूकृताः॥६५॥
अर्थ-काम सेवन करूं' इस प्रकार प्रथम मनमें कामरूप परिणत होनेके पश्चाद हाय ! मुझ पापबुद्धि मंदभाग्यने बुरा चितवन किया इस प्रकार आत्मामें निन्दा कर अनन्तर उससे तीन अभिलाषी होने पर अर्थात मनसे चितवन करनेके अनन्तर कामोद्रक होनेसे तीव्र अभिलाषा युक्त होने पर पंचकल्याण प्रायश्चित्त देना चाहिए। तथा मैथुन सेवन कर लेने पर गुरुकृत अर्थात एकान्तरोपवासपूर्वक चार मास प्रायश्चित्त देना चाहिए ॥६५॥ मासः सौंदर्यवीर्यार्थ रसायननिषेवणे । विशुद्धो द्विविधै हासे कल्याणं तु सकुत्कुचे॥६६॥
अर्थ-शरीरमें सुन्दरता लाने और बल बढानेके लिये. औषधि सेवन करनेका पंचकल्याण प्रायश्चित्त है। दो तरहकी हँसी (सनेका कोई प्रायश्चित्त नहीं है। एक-हाथोंसे मुख बँक कर हंसना, दूसरी-ओगेको थोड़ा खोल कर हंसना, यह