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प्रायश्चित्त-समुच्चय । कल्याणमेषणादोषे दायके पुरुमंडलं। ... मिश्रेऽपरिणते मासो भिन्नः समनुवर्णितः ॥८५॥
अर्थ-शंकितादि दश एपणादोषोंका प्रायश्चित्त कल्याणक, प्रसूति आदि अनेक प्रकारके दायकदोषका प्रायश्चित्त पुरुमंडल तथा प्राधे रंधे हुए, जल चांवल छोड़ देनारूप मिश्रदोष और प्राधासोझा हुआ आहाररूप अपरिणत दोषका प्रायश्चित्त भिन्नमास कहा गया हे॥८॥ निर्दोषोऽत्यंततात्पर्यादल्पानल्पे प्रलेपने । स्तोकेऽयत्नात्पुरुमदः कल्याणं बहुलेपने ॥८६॥ __ अर्थ-जिस शून्यस्थानमें वर्षाकालमें गड्ढ़े पड़ गये हों उसको यत्नपूर्वक प्रासुकं गोमय, जल आदिसे शल्प या बहुत लीपने पर निर्दोष है। और अयत्नपूर्वक थोडा लोपनेका पुरुमंडल प्रायश्चित्त और बहुत लोपनका कल्याणक प्रायश्चित्त है। अल्पलेपे च यत्नेन पश्चात्कर्मणि शुद्धयति। अल्पलेपेऽप्ययत्नेन दंडनं पुरुमंडलं ॥ ८७॥ . __अर्थ-रहनेके स्थानको पंश्चात्कर्म (अवश्य करने योग्य कम)में यत्नपूर्वक थोड़ा लीपे ता शुद्ध है-कोई प्रायश्चित्त नहीं। तथा प्रयत्नाचारपूर्वक थोड़ा भी लीपे तो उसका प्रायश्चित्त · पुरुमंडल है ॥८॥ .
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