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प्रायश्चित-समुच्चय । प्रायश्चित्त भी कल्याणक है अथवा रात्रिके समय विलोंवाले स्थानमें सर्प, चूहे आदिक त्राससे विलको पत्थर आदिसे मूंद कर सो गये और प्रातःकाल उसे उघाड़ कर चले गये तो कोई प्रायश्चित्त नहीं है। पुरुमर्दो यतोऽयत्नाद्विडालादिप्रवेशने । क्षमणं लघुमासोऽथ स्तेनस्य वृषसूदने ॥९१॥
अर्थ-जो असावधानोसे निवासस्थानका दरवाजा खोलकर चला जाय उसे पुरुमंडल प्रायश्चित्त देना चाहिए। यदि उसमें बिल्लो नौला सांप आदि घुस जाय ता उपवास प्रायश्चित्त तथा चोर घुस जाय और चूहोंका मरण हो जाय तो लघुपास पायश्चित देना चाहिये ॥१॥ मार्यमाणान विलोक्यानंश्चौरादीनेति पंचकं । भिन्नमासमथो निन्दां पंचकं म्रियमाणकान्॥ ___ अर्थ-यदि कोई व्याधिसे ग्रसित साधु दूसरों कर पारते हुए चौरोंको देखकर आहार ग्रहण कर ले तो वह कल्याणक प्रायश्चित्तको प्राप्त होता है और यदि व्याधिग्रसित नहीं है। नीरोग है तो भिन्न मास प्रायश्चित्तको प्राप्त होता है। तथा मरे हुए चौरोंको देखकर बीमारीवश आहार ग्रहण करे तो आत्मनिंदाको प्राप्त होता है अर्थाद अपने आप अपनी निंदा करना कि हाय मैं ने बुरा किया इत्यादि यही इस दोषको शुद्धिका मायश्चित्त है और यदि वीमार न होकर मरे हुए चोरों को देख