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प्रायश्चित्त-मुच्चय ।
पर अहंकारपूर्वक उन खेलोंके बादमें लग गये तो उसका पायश्चित्त एक कल्याणक है। तथा हेतुवाद अर्थात् न्याय प्रादिके वाद विवादमें लग जाये और पराजय हो जाय तो उसका मायश्चित्त कल्याणक है। अगर विजय हो जाय तो कुछ भी प्रायश्चित्त नहीं है ॥६॥ धूलिप्रहेलिकागाथाचक्कूलान्ताक्षरोक्तिषु । . . तृणपासविपाशेऽपिपुरुमंडलमीरितं ॥ ६१॥
अर्थ-पांशुक्रीड़ा (धूलिके खेल) परस्पर पहेलिया बोलना गाथाचतुष्टय बोलना, अन्त अत्तरका बोलकर उसका मतलक पूछना, पद चक्र, वचन-प्रति वचन कहना, तृणवंध छडाना इत्यादि अनेक बातें हैं उनमें लग जानेका प्रायश्चित्त पुरुमंडल. कहा गया है ।।६१॥ धातुवादेऽथ योगादिदर्शने द्रव्यनाशने। ... स्वपक्षीक्षिते देयं कल्याणं मासिकं परैः॥२॥
अर्थ-धातुवाद, योगादिदर्शन और द्रव्यनाशन इन विषयोंको यदि अपने पक्षके लोग देख लें तो उसका प्रायश्चित्त कल्याणक देना चाहिए और यदि परपक्षवाले मिथ्यादृष्टि लोग देख लें तो पंचकल्याण प्रायश्चित्त देना चाहिए। सोना चांदी आदि धातुओंमें क्रियाओं द्वारा वर्णकी उत्कर्षता आदि दिखाना धातुवाद है। कपूर, कस्तुरी, केशर, कुंकुमः