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प्रतिसेवाधिकार। वर्षास्वतुच्छकार्येण हिमे ग्रीष्मे लधीयसि । योजनानि दश द्वे च कार्ये गच्छन्न दोषभाक् ॥
अर्थ-वर्षा ऋतुमें देव ओर आर्षसंघ संबन्धी कोई बड़ा कार्य तथा शीतकाल और ग्रीष्मकालमें छोटा कार्य आ उपस्थित हुआ तो उस कार्यके निमित्त बारह योजन तक कोई साधु चला जाय तो वह दोषी नहीं है, वारह योजनसे ऊपर गमन करनेवाला प्रायश्चित्तको प्राप्त होता है ॥५५॥ ऋतुबंधमतिकामेन्मासेनाकारणाद्यदि । लघुमासोगुरुः स स्यात् सर्ववर्षाविभेदिनि॥५९॥
अर्थ-किसी कार्यके अर्थ कहीं अन्यत्र जाना पडे, वहां कार्य एक महोनेका ही है उससे अधिक समय बिना ही कारण व्यतीत कर दे तो उसका प्रायश्चित्त लघुमास हैं। यदि सारा वर्षाकाल विता दे तो उसका प्रायश्चित्त गुरुमास है ॥५६॥ दर्पतःपंचकल्याणं सारीनाब्यादिकेलिषु । हेतुवादे तु कल्याणं शुद्धो वा विजये सति ॥६॥
अर्थ-अहंकारवश सारी नाड़ी आदि क्रीड़ा करनेका प्रायश्चित्त पंचकल्याण है। सारा नाम जुआ खेलनेके उपकरणका चौपड़का है। चार हाथकी पोली नालीको नाड़ा कहते हैं यह एक प्रकारका मंत्रका उपकरण है। अथवा राजाने कहा कि . श्रमण चौपड़ आदि जुएके खेल नहीं जानते उसके इस कहने ।