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प्रतिसेवाधिकार । शयालर्दिवसे शेते चेत्कल्याण समश्नुते । अतोऽन्यस्य भवेद्देयो भिन्नमासो विशुद्धये।७८३ ___ अर्थ-जिसका सोनेका स्वभाव पड़ा हुआ है वह यदि दिनमें सो जाय तो कल्याणको प्राप्त होता है अर्थात् उसे कल्याणक प्रायश्चित्त देना चाहिए। और जिसका स्वभाव सोनेका नहीं है वह यदि दिनमें सो जाय तो उसको उसकी शुद्धिके लिए भिन्नमास प्रायश्चित्त देना चाहिए ॥८॥ हस्तकमणि मासार्हे गुरौ लघुनि पंचकं । शुद्धश्च पंचकं मासश्चतुर्मास्यां लघौ गुरौ ॥७९॥
अर्थ-एक महीने भर में बनाकर तयार करनयोग्य पुस्तक. कमंडलु आदि चीजोंको निरंतर बनाता रहे अथवा अमासुक. द्रव्यसे वनांव तो कल्याणक प्रायश्चित्त है और यदि लघु. अर्थात् खाध्याय-व्याख्यानका न छोड़ कर अवकाशके समयमें मासुक वस्तुस तयार करे तो कोई प्रायश्चित्त नहीं है । तथा यदि चार महीने में हस्तकर्म अर्थात् पुस्तक कमंडलु आदि यथावसर प्रामुक द्रव्यसे तैयार करे तो कल्याणक प्रायश्चित्त है
और यदि गुरु अर्थात स्वाध्याय छोड़कर निरंतर प्रमासुक द्रव्यसे तैयार करे तो पंचकल्याणक प्रायश्चित्त है ॥ ७॥ . पार्श्वस्थानुचरे वाह्यश्रुतिशिक्षणकारणात् । .. करणीकाव्यशिक्षायै मिथ्याकारेऽथ पंचकं ॥८॥
अर्थ-न्याय, व्याकरण, छंद, अलंकार, कोष आदि वाह.