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प्रायश्चित्त-समुच्चय । तर करने पड़ते हैं। भोजन पान करना भी दोप ही है। ये दोप दुस्त्याज्य हैं। सारांश-इन कर्तव्योंके करने पर कायोत्सर्ग नामका प्रायश्चित्त लेना चाहिए ॥२७॥ अपमृष्टपरामर्श कंडूत्याकुंचनादिषु । जलखेलादिकोत्सर्गे कायोत्सर्गः प्रकीर्तितः॥ __ अर्थ-अप्रतिलेखित शरीरादि वस्तुओंसे स्पर्श हो जानेपर, खाज खुजाने हाथ पैर प्रादिके फैलाने सिकोड़ने आदि क्रियाके करने पर, और मल, थूक, आदि शब्दसे खकार आदि . शारीरिक मल आदिके त्यागने पर कायोत्सर्ग प्रायश्चित्त कहा . गया है ॥२६॥ तंतुच्छेदादिक स्तोके संक्लिष्टे हस्तकर्मणि। मनोमासिकसेवायां कायोत्सर्गः प्रकीर्तितः॥ __ अर्थ-तंतु (धागा) तोड़नेका, आदिशब्दसे तृण वगैरहके तोडनेका, अल्प संक्लश उत्पन्न करनेका, पुस्तक आदिके संचय करनेरूप हस्तकर्मका और इस उपकरणको इतने दिनोंमें बनाकर तयार करूंगा इस प्रकार मनसे चितवन करनेका प्रायश्चित्त कायोत्सर्ग है ॥ ३० ॥ मृदाथवा स्थिरैर्वीजैहरिद्भिस्त्रसकायकैः । संघट्टने विपश्चिद्धिः कायोत्सर्गः प्रकीर्तितः॥
अर्थ-मिट्टोसे, स्थिरचीजोंसे और हरे तृमा आदिसे तथ