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प्रतिसेवाधिकार ।
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सवीं और इकतीसौं हैं। इस तरह आउदोषोंकी कुल शलाकाएं इकतीस और शुद्धियां अस्सी होती हैं। संदृष्टि
३ ४ ४ ४ ४ ४ ४ ४ ३६८८१२ १२ १४ १७ यहां भी ऊपर शलाकाओंको संख्या और नीचे शुद्धियों की संख्या है ॥ २६॥ आलोचनादिकं योग्ये कायोत्सर्गोऽथ सर्वकं । तपः आदि कचिद्देयं यथा वक्ष्ये विधि तथा॥ __अर्थ-योग्य व्यक्तिक दोपोंको जानकर आलोचना, आदि शब्दसे प्रतिक्रमण, तदुभय, विवेक इनमेंसे एक या दो या तीन अथवा चारों प्रायश्चित्त देखें और कायोत्सर्ग भी देवे। अथवा सभी आलोचनादि दश तरहके प्रायश्चित्त देवे । तथा किसी व्यक्ति विशेषको तप, आदि शब्दसे छेद मूल, परिहार और श्रद्धा ये पांच प्रायश्चित्त देवे ।। २७ ॥
ये सब प्रायश्चित्त जिस विधिसे देने चाहिए, उसविधिको आगे कहते यदभीक्ष्णं निषेव्येत परिहर्तुं न याति यत् । । यदीपञ्च भवेत्तत्र कायोत्सगों विशोधनं ॥२८॥ __ अर्थ-जो निरंतर सेवन करनेमें आते हैं, जो त्यागने में नहीं आते हैं और जो स्तोक हैं ऐसे दोषोंका प्रायश्चित्त कायोत्सर्ग है। भावार्थ-चलना-फिरना आदि भी दोप है जो निर