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प्रतिसेवाधिकार । वह कल्याणकको प्रात होता है। तथा व्याधिरहित नोरोग होकर इलायची, लौंग, जातिफल, जातोपत्र, सुपारो आदिका सेवन करता है वह पंचकल्याणकको प्राप्त होता है। भावार्थरुग्ण अवस्था अत्यन्त लोलुपताके साथ छहों तरहके रस और आहार तथा लसुन आदि अनंतकाय चोजोंके सेवन करनेका प्रायश्चित्त एक कल्याणक है। तथा नोरोग हालतमें इलायची, सुपारी आदि चीजोंके खालेनेका प्रायश्चित्त पंचकल्याणक है। कान्दर्ये यन्मृषावादे मिथ्याकारेण शुद्धयति ।
अननुज्ञातसंशून्यखलादिकमलोज्झने ॥४९॥ ___ अर्थ-कामकी उन्मत्तताके कारण थोड़ा असत्य बोलने पर मेरा दुष्कृत्य मिथ्या हो' इस तरहके वचनमानसे शुद्ध निर्दोष हो जाता है। तथा आगमसे निषिद्ध और निर्जन ऐसे खलियान, खेत, तालाब, वृक्षोंकी जड़ आदि स्थान जहां मलोत्सर्ग करनेसे लोक नाराज होते हों वहां मलोत्सर्ग करने पर भी मिथ्याका वचनसे शुद्ध हो जाता है ॥ ४६॥ जघन्यं तुल्यमूल्येन गृह्वानोऽपि विशुद्धयति,। उत्कृष्टं मध्यमं वाथ गृलतो मासिकं भवेत् ॥५०॥ ___ अथ-जघन्य, अथवा मध्यम, अथवा उत्कृष्ट चीजोंको जो समान मूल्यमें खरीदता है वह विना प्रायश्चित्तके शुद्धिको प्राप्त होता है। और यदि चौर डाकू आदिसे लेता है तो उसका . प्रायश्चित्त पंचकल्याणक है। भावार्थ-यह मुनियोंके प्राय