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प्रतिसेवाधिकार । जिसमें रक्खा जाय वह सन्निधि है। उसमें यदि प्रमाद या अप्र-- मादसे कोई जोव मर जाय तो अप्रमत्तको पांच निर्विकृति पायश्चित्त और प्रमादीको एक कल्याणक प्रायश्चित्त देना चाहिए। यदि वार वार त्रस जीव मरे तो पंचकल्याणक प्रायश्चित्त देना। 'चाहिए और दर्पसे अथवा सावधानी रखते हुए एक वार पंचेन्द्रिय जीव परणको प्राप्त हो जाय तो एक कल्याणक. प्रायश्चित्त देना चाहिए॥३५-३६ ॥ संस्तरे यदि पंचाक्षो व्यापयेताप्रमादतः । पंच निर्विकृतान्येककल्याणं सप्रमादतः ॥३७॥ __ अर्थ-सावधानी रखते हुए भी संस्तर-सोनेके आथरे पर यदि पचन्द्रिय जीव मर जाय तो उसका प्रायश्चित्त पांच निर्विकृतियां हैं और यदि असावधानीले मरे तो एक कल्याणक मायश्चित्त है ।।३७॥
आवासद्वारमूले चेत्पंचाक्षो विगतासुकः । तन्निष्क्रान्तप्रविष्टानामेककल्याणकं भवेत् ॥३८॥ ___ अर्थ-वसतिका (रहनेका स्थान ) के दरवाजेके अधःः प्रदेश (नीचेके हिस्से) में यदि पंचेन्द्रिय जीव मर जाय तो जितने बाहर निकले हों और भीतर गये हों उन सबके लिए एक एक कल्याणक प्रायश्चित्त है।॥३६॥
१-बसहियदुवारमूने रादो पंचेदियो मदे दिहो। 'जावदिया णीसरिदा पविसंवा एक कलाणं ॥
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