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प्रतिसेवाधिकार त्रस कायके साथ हाथ पैरोंका संघर्पण हो जाय तो विद्वानोंने उसका प्रायश्चित्त कायोत्सर्ग करना बताया है। जो गेहूं आदि को वीज कहते हैं। मर्दन करने (मसलने-कुचलने) पर भी जो बोज नष्ट न हों उन्हें स्थिर वोन कहते हैं ।। ३१ ॥ पांश्वालिप्तपदतोये विशेद् वा विपरीतकः। . पुरुमंडलमाप्नोति कल्याणं कर्दमापात् ॥ ३२॥
अर्थ-जिसके पैरोंपर धूल लिपट रही है वह यदि पानीमें धुस जाय अथवा जिसके पैर गोले हैं वह यदि अपने पैर धूलमें रख दे तो उसका प्रायश्चित्त पुरुमंडल है। तथा कीचड लिपटे पैरोंसे पानीमें चला जाय तो उसका प्रायश्चित्त एककल्याणक (पंचक) है ॥३२॥ हरितृणे सकृच्छिन्ने छिन्ने वानन्तके त्रसे । पुरुमंडलमाचाम्लमेकस्थानमनुक्रमात् ॥३३॥
अर्थ- हरे तृणोके एक वार छेदन-भेदनका प्रायश्चित्त पुरुमंडल है । सूरण गडूचो, स्नूही, मूल, आदा, आदि अनन्तकायिक चीजोंके छिन्न भिन्न करनेका प्रायश्चित्त आचाम्ल है (जिस वनस्पनिके मूलमें शाखाओंमें, पत्तोंमें असंख्याते शरीर हों, एक एक शरीरमें अनन्त २ जीव निवास करते हों. एक जीवके मरने पर अनन्तोंका मरण होता हो और एकके उत्पन्न : होने पर अनन्त उत्पन्न होते हों वे जीव अनन्त कायिक हैं) तथा दो इंद्रिय तीन इन्द्रिय मादि त्रस जीवोंके छदन-भेदन करनेका