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प्रतिसेवाधिकार । । असानुवीची यत्नपतिसेवी तृतीयं दोषका प्रायश्चित्त द्विसंयोगको चार शलाकाएं अर्थात आठ शुद्धियां हैं । निर्विकृति-आचाम्स निर्विकृति एकस्थान, आचाम्ल तमण और एकस्थान क्षमण । ये शलाकाएं क्रमसे सातवीं, आठवीं, चौदहवीं और पंद्रहवीं हैं। असकृत्कारी, असानुवीची प्रयत्नसंसेवी चौथे दोपंका प्रायश्चित्त, द्विसंयोगवाली चार शलाकाएं अर्थात् आठ शुद्धियां हैं निर्विकृति क्षमण, पुरुमंडल आचाम्ल, पुरुमडल एकस्थान और पुरुमडल क्षपण । ये शलाकाए क्रपसे नौवों, दशवी, ग्यारह: और वारहवी हैं । सकृल्कारो, सानुवीची, अप्रयत्नसेवी पांचवें दोषका प्रायश्चित् तीन संयोगवाली चार शलाकाएं अर्थात वारह शुद्धियां है। निर्विकृति परुमंडल आचाम्ल, निर्विकृति पुरुमडल क्षमण, पुरुमंडल आचाम्ल तमण और आचाम्स एकस्थान क्षमण। ये शलाकाएं क्रमसे सोलहवीं अठारहवों, तेइसवीं और पच्चीसवीं हैं। असककारी, सानुवीची, अयत्नसेवो छठे दोषका प्रायश्चित्त तीन संयोगवाली चार शलाकाएं अर्थात् वारह शुद्धियां हैं । निर्विकृति पुरुमंडल एकस्थान, १ पढम दुरज ताजा, चड पंचमिया य छह सेरसमी ।
सत्तम अभ चौहसमी वि य परणारसीचेव ॥ २ शवदस एक्कारसमी य वारसमी, तह य चेव, सोजसमी।
अट्ठारसमी वावीसिमा य पणवीसिमा, चेव ॥ पांचवें दोषमें ऊपर तेईसवीं शजाका बताई गई है और इस गाथामें वाईसीं ।