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प्रतिसेवाधिकार ।
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ज्ञाचाम्न और एकस्थानको है। अनागाढकारणकृत, असकृकत्कारी, असानवीची ओर अयत्नसेवो सोलहवें दोषका प्रायश्चित्त पांचवों, उनतीसवीं और इकतीसवीं ये तीन शलाकाए हैं। पांचवीं शलाका एकसंयोगी भगकी है जिसमें समण है। उनतीसवीं निर्षिकृति, आचाम्ल, एकस्थान और क्षमण एवं चतुःसंयोगो मंगकी है और इकतीसवीं शलाका निर्विकृति, एरुमंडल, प्राचाम्ल, एकस्थान और क्षमण एवं पंचसंयोगी भगकी है। इस तरह सोलह दोषोंमें छोटे वडे दोपका विचार कर प्रायश्चित्त बताया। पहला, तीसरा, पांचवां, सातवां, नौवां, ग्यारहवां, तेरहवां और पन्द्रहवां ये आठ दोप तो लघु प्रायश्चित्तके योग्य हैं और शेष दूसरा, चौथा, छठा, आठवां, दशवा बारहवां, चौदहवां और सोलहवां ये आट गुरु प्रायश्चित के योग्य हैं। संदृष्टि
१२२२२२२२२२२ २ २ २ २ ३ .६२६ ४६६६२६४६ ४६६ १०
इस संदृष्टिमें ऊपर प्रत्येक दोपकी शलाकाएं हैं और नीचे : प्रायश्चित्तोंकी संख्या है। यह इस विषयको स्पष्ट करनेवाला संग्रह श्लोक है
२-पंचम उगतीसदिमा इगत्रीसदिमा य होति सोजसमे ।
मिस्ससलागा गेयह इगितिचउपंचसंजोगे।