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प्रायश्चित्त-समुच्चय । आये वालोचनान्येषु द्वे द्वे स्यातां शलाकिके। आचं मुक्त्वा यथायोग्यं प्राग्यदुद्दिष्टमष्टसु ।। __ अर्थ-प्रथमदोपमें आलोचना प्रायश्चित्त है अन्य दोषोंमें दो दो शलाकाएं हैं विशेष इतना है कि सोलहवें दोषमें तीन शलाकाएं हैं। तथा आठ दोषोंमें पहले दोषको छोड़कर शेष दोषोंमें पूर्ववत् प्रायश्चित्त समझना । भावार्थ-पहले दोपों में तीन शलाकाएं और शेष सात दोपोंमें चार चार शलाकाएं रूप प्रायश्चित्त है। __ जो निष्कारण आठ भंग हैं वे सर्वथा ही अशुद्ध हैं तो भी. उनमेंका पहला भंग अन्य भंगोंकी अपेक्षा विशुद्धतम है। अन्त.. का अविशुद्धतम अर्थात सबसे अधिक अविशुद्ध है। संकृत्कारी सानुनीची, यलसेवी प्रथम भंगका प्रायश्चित्त एक संयोगवाली निर्विकृति, पुरुमंडल और आचाम्स ऐसो पहली दूसरी तीसरी तीन शलाकाएं हैं। असकृत्कारी, सानुवीची, प्रयत्नसेवी दुसरे दोषका प्रायश्चित्त चार शलाकाएं हैं। दो शलाकाएं एकस्थान
और क्षमण ऐसे एकसंयोगकी और दो शलाकाएं निर्विकृति पुरुमंडल और आचाम्ल एकस्थान ऐसे द्विसंयोगकी। ये शशाकाएं चौथी, पांचवी, छठी और तेरहवी हैं। सकृत्कारी १-अहण्हं आदिपणे मिस्स सलागाउ तिरिण दायव्वा ।
सेलाण चत्तारिय पुध पुध ताणं सुण ठाण।