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प्रतिसेवाधिकार । प्रायश्चित्त नौ हैं । शलाकाओंका विमाग करनेवाला यहां. एक संग्रह श्लोक है उसे कहते हैं।
आद्यमाये तपोऽन्येषु प्रत्येकं तवयं ततः। आये तत्त्रयमष्टानां तचतुष्टयमन्यतः॥
अर्थ-सोलह दोपोंमेंसे प्रथम दोपका प्रायश्चित्त आद्य तप अर्थाद प्रथम शलाका है। शेप पंद्रह दोपोंका मायश्चित्त दो दो तपदो दो शलाकाएं हैं। तथा आठ दोपोंमेंसे प्रथम दोपका प्रायश्चित्त तीन तप-तीन शलाकाएं और शेष सात दोपोंका, मायश्चित चार चार तप-चार चार शलाकाएं हैं।
आगाहादि सोलह दोपोंका प्रायश्चित्त सामान्यसे कहा गया अब लघु दोप और गुरु दोपका विचार कर प्राचार्योंके उपदेशके अनुसार उत्तर सूत्रके अभिप्रायसे उक्त शलाकाओंमें. किसको कौनसा मायश्चित्त दिया जाता है यह निश्चय करते. हैं। आगाढकारणकृत, सत्कारी, सानुचीची, प्रयत्नसंसेवी. प्रथम दोपका प्रायश्चित्त मालोचनामात्र है। अनागाढकारणकृत, सकृत्कारी, सानुवीची, प्रयत्लसंसेवी द्वितीय दोपका बड़ा पायश्चित्त-छह शुद्धिवाली दो शलाकाए हैं जिनमें एक शलाका तो निर्विकृति और क्षमण नामकी नौवीं द्विसंयोगकी और दूसरी निर्विकृति, पुरुमंडल, आचाम्ल और एकस्थान नामकी. छन्वीसी चतुःसंयोगकी है। इस तरह दोनों शलाकाओंके. छह प्रायश्चित्त द्वितीय दोपके हैं। आगाढकारणकृत, असक