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प्रायश्चित-समुच्चय
मंडल, आचाम्ल. एकस्थान और क्षमण यह पांचोंका मिलकर एक भंग । पांच प्रत्येक मंग, दश द्विसंयोगी भंग, दश निसंयोगी भंग, पांच चतुःसंयोगी भंग और एक पंच संयोगी भंग, कुल मिलकर ५+१०+१०+५+१-३१ इकत्तीस भंग हुए। इनको शलाका भी कहते हैं। पहले जो सोलह दोष कह आये हैं उनमें इन इकत्तीस शलाकाओंका विभाग कर प्रायश्चित्त देना चाहिए। प्रथम दोपका पहलो सलाकाका भायश्चित्त और शेषपंद्रह दोषोंका प्रत्येक और मिश्र ऐसो दो दो शलाकाओंका प्रायश्चित्त देना चाहिए। इन निर्विकृति आदि इकतीस शलाका रूप प्रायश्चित्तोंकी यह प्रस्तार संदृष्टि
है।
१२२२२२२२२२२२२२२२ १ २२५४४४४६६६६६६६६
इस संदृष्टिमें ऊपर शलाकाओंकी संख्या है और नोचे उन शलाकाओंके अन्तर्गत प्रायश्चित्तोंकी संख्या है। यद्यपि प्रथम दोषको छोडकर शेष पंद्रह दोषोंकी सलाकाएं समान दो दो हैं तथापि उनके प्रायश्चित्तोंको संख्या समान नहीं है दूसरे तोसरे दोषको शलाकाएं दो दो हैं और प्रायश्चित्त भी दो दो हैं। चौथेसे आठवां तक शलाकाएं दो दो और पायश्चित्त चार चार, नौंवेसे तेरहवें तक शलाकाएं दो दो और प्रायश्चित्त छह छह, चौदह- पद्हमें शलाकाए, दो दो और प्रायश्चित्त आठ आठ तथा सोलहवेमें शलाका दो और