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२२. प्रायश्चित्त-समुञ्चय । से यदि आगाढका ग्रहण हो तो उसके आगेवाले अनागाढको अनंकित समझना । इसीतरह सकृत्कारी-असकृत्कारी. सानुवीची असानुवीची और यत्नसेवी अयत्नसेवीमें भी समझना । किसीने पूछा कि आगाढकारणकृत सककारी, सानुवीची अयत्नसवी यह कौनसी उच्चारणा है तब प्रथम एक रूप रखिये उसको अपरके यत्नसेवी
और प्रयत्नसेवीका प्रमाण दोसे गुणिये, दो हुए, अनं-- कितको घटाइये, यहां अनंकित कोई नहीं दोनों हो अंकित हैं अतः दो ही रहे। फिर इन दो को सानुवीची और असानुवीची का प्रमाण दो स गुणिये, चार हुए, यहां असानुवीची अनंकितः है अतः चारमेंसे एक घटाइये तव तीन रहे । इन तीनको सकृत्कारी और असककारीका प्रमाण दोसे गुणिये, छह हुए; अनंकित असल्कारीको घटाइये पांच रहे, पुनः पांचको आगाढ़ अनागाढ़की संख्या दोसे गुणिये, दश हुए अनंकितको घटाः दाजिये, नौ रहे। इस तरह आगाढकारणकृत सकृत्कारो सान-. . वीची अयत्नसेवी नामकी नौवी उच्चारणा सिद्ध होती है। यही विधि अन्य उच्चारणाओंके निकालनेमें करनी चाहिए॥१६॥ विशुद्धः प्रथमोऽन्योऽपि सर्वथा शुद्धिवर्जितः। भंगाश्चतुर्दशान्येतु सर्वे भाज्या भवन्त्यमी॥२०॥ __अर्थ-इन सोलह भंगोंमेंसे पहला भंग विशुद्ध है-- लघु. प्रायश्चिचके योग्य है। अन्तका सोलहवां भंग विलकुल अशुद्ध,