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. कविवर वृन्दावन विरचित
है जाकरि करमको करत कता, करन ताको नाम है । वह करम जाको देत संप्रदानसो सरनाम है ।। ५६ ।।
पूरव अवस्था त्याग कर जो, होत नूतन काज है । सो जानियो पंचमों कारक अपादान समाज है ॥ जाके अधार वनै करम, अधिकरन सोई ठीक है । यह नाम लक्षण है विचच्छन छहोंकी तहकीक है ॥ ५७ ।।
भुजंगी। है जहां औरकी मान नैमित्तत्ता, करै है सुधी काजकी सिद्धता । है तहां है असद्भूतुपचारता, कोई द्रव्य काहूको ना धारता ॥ ५८ ॥
मनहरन । जैसे कुम्भकार करतार घट कर्म करें । दंड चक्र आदि ताके साधन करन है ।। जब घट कर्मको वनाय जलहेत देत । तहाँ संप्रदान नाम कारकं वरन है ॥ पूरव अवस्था मृतपिंडको विनाश भये । घट निरमये अपादानता धरन है ॥ भूमिके अधार घट कर्मको बनावत है, तहाँ अधिक होत संशय हरन है ॥ ५९॥
. दोहा। यामें करतादिक पृथक्, यातें यह व्यवहार । सम्यकबुद्धि :पसारकें समझ लेहु श्रुतिद्वार ॥६०॥