Book Title: Pravachansar Parmagam
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Dulichand Jain Granthmala
View full book text
________________
२०४ ]
कविवर वृन्दावन विरचित LEASEANIZATHSASA ZAMASASHZASAIZATHRELESE ARS RESEASES,
ॐ नमः सिद्धेभ्यः । अथाष्टम एकाग्ररूपमोक्षमार्गाधिकारः।
मंगलाचरण-दोहा । सिद्धशिरोमनि सिद्धपद, वंदों सिद्ध महेश । सो इत नित मंगल करो, मैटो विघन कलेश ॥ १ ॥ सम्यकदरशन ज्ञान व्रत, तीनों जत्र इकत्र । सोई शिवमग नियतनय; है शुद्धातम तत्र ॥ २ ॥ तथा जिन्हें यह लाभ हुव, ऐसे जे मुनिराज । तिनहूको शिवमग कहिय, धरमी धरम समाज ॥ ३ ॥ तासु परापतिके विपैं, जिन आगमको ज्ञानि ।
अवशि चाहिये तासते, अभ्यासो जिनवानि ॥ ४ ॥ (१) गाथा-२३२ प्रथम मोक्षमार्गके मूल साधनभूत . आगममें प्रवृत्ति ।
मनहरण । सम्यकदरश ज्ञान चारितकी एकताई,
येही शुद्ध तीरथ त्रिवेनी शिवमग है । ताकी एकताई मुनि पाई जब सुपर,
पदारथको भलीभाँति जानत उमग है । ऐसो मेदज्ञान जिन-आगमहीसेती होत, .
संशय विमोहठग लागै नाहिं .लग है । ताहीते जिनागम अभ्यास परधान कयौ,
नाकी अनेकांत जोत होत जगमग है ॥ ५ ॥
mantakoATASKOREATARRATIOOK.neRRORIGIOSAKURDUReasonuTuoTHEMANO

Page Navigation
1 ... 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250 251 252 253 254