Book Title: Pravachansar Parmagam
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Dulichand Jain Granthmala

View full book text
Previous | Next

Page 215
________________ २०६ ] फविवर वृन्दावन विरचित तातें जिनआगम बड़ो, उपकारी पहिचान ।। ताको वृन्द पढ़ो सुनो, यह उपदेश प्रधान ।। १४ ।। (२) गाथा-२३३ आगम-हीनको मोक्ष नहीं। मत्तगयन्द । जो मुनिको नहीं आगमज्ञान, सो तो निज औ परको नहिं जाने । आपु तथा परको न लखै तव, क्यों करि कर्म कुलाचल भान ।। है जासु उदै जगजाल विपैं, चिरकाल विहाल भयो भरमाने । . तासे पढ़ो मुनि श्रीजिनआगम, तो सुखसों पहुंचो शिवथान ॥१५|| कवित्त छन्द । जिनआगमसों दरव भाव नो, करमनिकी हो है तहकीक । तव निजभेदज्ञानवलकरिके, चूरै करम लहै शिव ठीक || । तिस :आगमतें विमुख होयकै, चहै जो शिवसुख लहों अघीक । सो अजान विनु तत्त्वज्ञान नित, पीटत मूढ़ सांपकी लीक ॥१६॥ आगमज्ञान रहित नित जो मुनि, कायकलेश कर तिरकाल । ताको सुपरभेद नहिं सूझत, आगम तीजा नयन विशाल | तब तह मेदज्ञान विनु कैसे, चलें शुद्ध शिवमारग चाल । सो विपरीत रीतकी धारक, गावत तान ताल विनु ख्याल ॥१७॥ दोहा । __ ज्यों ज्यों मिथ्यामग चलै, त्यो त्यों बंधै सोय । ज्यों व्यों भी कामरी, त्यों-त्यों भारी होय ॥१८॥ (३) गाथा-२३४ मोक्षमागीको आगम ही एक चक्षु है । सोरठा। मागमचक्षू साध, अक्षचक्ष जगजीव सब । देव औघडग लाध, सिद्ध सर्वचक्षू विमल ॥ १९ ॥ 1 साय । wwwwwwwwwwww

Loading...

Page Navigation
1 ... 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250 251 252 253 254