Book Title: Pravachansar Parmagam
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Dulichand Jain Granthmala
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प्रवचनसार
[ २४१.
यह मुनि शुभचारित्रको, पूर्ण भयो अधिकार । सो जयवंत रहो सदा, शशि सूरज उनिहार ॥११८॥
अथ कविवंशावली लिख्यते।
काव्य-२४ मात्रा। मार्गशीर्ष गत दोय, और पंद्रह अनुमानो । नारायन विच चन्द्र, जानि औ सतरह जानो ॥ इसी बीच हरिवंश, लाल बाबा गृह जाये । नाम सहारूपाह, साहजूके कहलाये ॥११९॥ बाबा हीरानन्दसाह, सुन्दर सुत तिनके । पंच पुत्र धनधर्म, -वान गुनजुत थे इनके ॥ प्रथमे राजाराम, बबा फिर अभैराज सुनु । उदयराज उत्तम सुभाव, आनन्दमूर्ति गुनु ॥१२०।। भोजराज औ जोगराज पुनि, कहे जानिये । इन पितु लग काशी, निवास अस सुखद मानिये ॥ अव बाबा खुशहाल, -चन्द्र सुतका सुनु वरनन । सीताराम सु ज्ञानवान, बंदों तिन चरनन ॥१२१॥ ददा हमारे लालजीय, कुल औगुन खण्डित । तिन सुत मो पितु धर्मचन्द, सब शुभजसमंडित ॥ तिनको दास कहाय, नाम मो वृन्दावन है । एक भ्रात औ दोय, पुत्र मोकों यह जन है ॥१२२॥

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