Book Title: Pravachansar Parmagam
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Dulichand Jain Granthmala

View full book text
Previous | Next

Page 251
________________ २४२ ] कविवर वृन्दावन विरचित महावीर है भ्रात नाम, सो छोटा जानो । ज्येष्ठ पुत्रको नाम, अजित इमि करि परमानो ॥ मगसिर सित तिथि तेरस, काशीमें तव जानो । विक्रमाव्द गत सतरहसे, नव विदित सु मानो ॥१२३॥ *मो लघु सुत है शिखर चन्द, सुन्दर सुत ज्येष्ठको । इमि परिपाटी जानिये, ब्रह्यो नाम लघु श्रेष्ठको || पद्धरी। संवत चौरानमें सु आय | आरेतै परमेष्ठीसहाय ॥ अध्यातमरंग पगे प्रवीन | कवितामें मन निशिद्यौस लीन ॥१२४॥ सज्जनता गुनगरुवे गम्भीर । कुल अग्रवाल सु विशाल धीर ॥ ते मम उपगारी प्रथम पर्मे । सांचे सरधानी विगत भर्म ॥१२५|| भैरवप्रसाद कुल अग्रवाल । जैनी जाती वुधि है विशाल || सोऊ मोपै उपकार कीन । लखि भूल चूक सो शोध दीन ॥१२६॥ छप्पय। सीताराम पुनीत तात, जसु मात हुलासो । ज्ञात लमेचू जैनधर्म, कुल विदित प्रकासो ॥ तसु कुलकमलदिनिन्द, प्रात मम उदयराज वर । अध्यातमरस छके, भक्त जिनवरके दिढ़तर ॥ ते उपगारी हमको मिले, जब रचनामें भावसों । तब पूरन भयो गिरंथ यह, वृन्दावनके चादसों ॥१२७॥ १. इन दो तुकामें दो २ मात्रायें अधिक हैं। और यह छन्द दोनों प्रतियोंमें आधा है।

Loading...

Page Navigation
1 ... 249 250 251 252 253 254