Book Title: Pravachansar Parmagam
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Dulichand Jain Granthmala
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२१६ ]
फविवर वृन्दावन विरचित
___ अधिकारान्तमंगल-दोहा । पूरन भयौ सुखद परम, शिवमग शुद्धसरूप । बन्दों श्रीजिनदेवको, जो लहि कही अनूप ।। ७२ ।।
इति श्रीमत्कुन्दकुन्दाचार्यकृत परमागम श्रीप्रवचनसारजीकी वृन्दावन अग्रवाल काशीवासीकृतभाषाविपैं एकाग्ररूप मोक्षमार्गका स्वरूप कथन ऐसा आठवाँ अधिकार पूरा भया । पौष शुद्ध पूरनमासी सोमवार संवत् १९०५ ।
___ इहां ताई सर्व गाथा २४५ अरु भाषाके छन्द नवसै__ अठहतर ९७८ । सो जयवंत होहु । मंगलमस्तु । श्रीरस्तु ।
SAMACHARIORMATHMHORTHATASAWARENCRECIRCOSce

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