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कविवर वृन्दावन विरचित LEASEANIZATHSASA ZAMASASHZASAIZATHRELESE ARS RESEASES,
ॐ नमः सिद्धेभ्यः । अथाष्टम एकाग्ररूपमोक्षमार्गाधिकारः।
मंगलाचरण-दोहा । सिद्धशिरोमनि सिद्धपद, वंदों सिद्ध महेश । सो इत नित मंगल करो, मैटो विघन कलेश ॥ १ ॥ सम्यकदरशन ज्ञान व्रत, तीनों जत्र इकत्र । सोई शिवमग नियतनय; है शुद्धातम तत्र ॥ २ ॥ तथा जिन्हें यह लाभ हुव, ऐसे जे मुनिराज । तिनहूको शिवमग कहिय, धरमी धरम समाज ॥ ३ ॥ तासु परापतिके विपैं, जिन आगमको ज्ञानि ।
अवशि चाहिये तासते, अभ्यासो जिनवानि ॥ ४ ॥ (१) गाथा-२३२ प्रथम मोक्षमार्गके मूल साधनभूत . आगममें प्रवृत्ति ।
मनहरण । सम्यकदरश ज्ञान चारितकी एकताई,
येही शुद्ध तीरथ त्रिवेनी शिवमग है । ताकी एकताई मुनि पाई जब सुपर,
पदारथको भलीभाँति जानत उमग है । ऐसो मेदज्ञान जिन-आगमहीसेती होत, .
संशय विमोहठग लागै नाहिं .लग है । ताहीते जिनागम अभ्यास परधान कयौ,
नाकी अनेकांत जोत होत जगमग है ॥ ५ ॥
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