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प्रवचनसार
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तिहूँकालमें जासको, बाधा लगै न कोय । सोई सतलच्छन प्रबल, सब दरवनिमें होय ॥२६॥
(६) गाथा-९८ किसी द्रव्य से अन्य द्रव्यकी उत्पत्ति नहीं और द्रव्यसे अस्तित्व कोई पृथक् नहीं है ।
__ मनहरण । अपने सुभावहीसों स्वयंसिद्ध द्रव्य नित,
निजाधार निजगुणपरजको मूल है । सोई है सत्तास्वरूप ऐसे जिनभूप कयौ,
तत्त्वभूत वस्तुको स्वभाव अनुकूल है ॥ द्रव्यको स्वभावरूप सत्ता गुन 'वृन्दावन',
प्रदेशते मेद नाहिं दोऊ समतुल है । आगम प्रमान जो न कर सरधान याको, सोई परसमयी मिथ्याती ताकी भूल है ॥२७॥
दोहा । जदपि जीव पुदगल मिले, उपजहिं बहु परजाय । तदपि न नूतन दरवकी, उतपति वरनी जाय ॥२८॥
मनहरण। द्रव्य गुनखान तामें सत्ता गुन है प्रधान,
गुनी-गुनको यहाँ प्रदेशभेद नाहीं है। . संज्ञा संख्या लच्छन प्रयोजन” द्रव्यमाहिं,
कथंचित भेद पै न सर्वथा कहाहीं है ॥
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