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कविवर वृन्दावन विरचित
दोहा । दरव और गुनके विय, है अन्यचविभेद ! जुदे दोउ नहिं सावया, श्रीगुरु करी निघद ॥ ६३ !!
मनहरण । गुन-गुनीमाहिं सावथा ही अभावरूप,
भेद माने दोनहीको नाम सम्वधा है । जाते जेते गुन ते जुदे-जुड़े इवे होई,
सो बान संघ नाहिं कहिवौ विकया है । गुन के अमाव भ गुनको अभाव होत,
सोनेनाहिं साधि दी साधी साध जया है । ताते व्यवहार कथंचित विभेद मानो,
वस्तुसिद्धिन श्रुतिमाहि जया मथा है । ६४ ॥
(१७) गाथा-१०९ सचा और द्रव्यका गुण-गुणीन्य
सिद्ध करते हैं। द्रव्यको मुमत्र परिनाम जु है निश्चै चरि,
अन्तिन स्वरूप सोई सत्ता नाम गुन है । सर्व गुनमें प्रवान फहरे निशान जाको,
उत्पादवयवुवसंजुत सुगुन है । ताही असतिरूप सत्त में विराजे दुर्व,
यातें सत नाम द्रव्य पावत अयुन है । ऐसे सज गुन औ दस गुनी एकाई,
साधी कुन्दकुन्द वृन्द वन्दत निपुन है ।। ६५ ।।