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प्रवचनसार
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अथ पंचमोविशेषज्ञेयतत्त्वाधिकारः।
मंगलाचरण-दोहा । वंदों आतम जो त्रिविध, वर्जित कर्मविकार । नेत मेत ज्ञातृत्व जुत, सब विधि मंगलकार ॥१॥ अब विशेषता दरखका, कथनरूप अधिकार । श्रीगुरु करत अरंभ सो, नैवंतो सुखकार ॥ २ ॥ (१) गाथा-१२७ द्रव्य विशेपोंके भेद ।
मनहरण । सत्तारूप दर्व दोय भांति है अनादि सिद्ध,
जीव औ अजीव यही साधी श्रुति मंथ है । तामें जीव लच्छन विलच्छन है चेतनता, ..
जासको प्रकाश अविनाशी पूंज पंथ है। ताहीको प्रवाह ज्ञान दर्शनोपयोग दोय, ।
सामान्य विशेष वस्तु जानिवतें कंथ है। पुग्गलप्रमुख दर्व अजीव अचेतन हैं,
ऐसे वृन्द भापी कुन्दकुन्द निरगंथ है ॥ ३ ॥ (२) गाथा-१२८ आकाश एक उसके दो भेद ।
. छप्पय । जो नभको परदेश नीव, पुदगल समेत है । धर्माधर्म सु अस्तिकाय,-को जो निकेत है ॥ कालानूजुत पंच दरव, परिपूरन जामें । सोई लोकाकाश जानु, संशय नहिं या ॥