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प्रवचनसार
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(३४) गाथा-१७९ गग परिणाम मात्र जो भाव बन्ध है सो द्रव्य बन्धका हेतु होनेसे वहीं निश्चय बंध है।
द्रुमिला। परदविर्षे अनुराग धेरै, वसु कर्मनिको सोइ बंध करै । अरु जो जिय रागविकार तजै, वह मुक्तवधूकहं वेगि वरै ।। यह बंध रु मोच्छमरूप जथारथ, थोरहिमें निरधार धेरै । निहचै करिके जगजीवनिके, तुम जानहु वृन्द प्रतीन भरै ॥८४॥ .
चौपाई। रागभाव प्रनवे जे आंधे । नूतन दरव करम ते बांधे ॥ वीतरागपद जो भवि परसै । ताको मुक्त अवस्था सरसै ॥८५॥
दोहा। रागादिकको त्यागि जे, वीतराग हो जाहँ ।
चले जाहिं वैकुंठमें, कोइ न पकर बाहँ ॥ ८६ ॥ (३५) गाथा-१८० राग द्वेष-मोह युक्त परिणामसे बन्ध है। राग शुभ या अशुभ होता है ।
मनहरण । परिनाम अशुद्ध” पुग्गलकरम बंधे,
सोई परिनाम रागदोषमोहमई है। तामें मोह दोप तो अशुभ ही है सदा कालं,
रागमें दुभेद वृन्द वेद वरनई है ॥ पंच' परमेश्वरकी भक्ति' घरमानुराग, ___ यह शुभराग भाव कथंचित लई है ।