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कविवर वृन्दावन विरचित
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(४९) गाथा-१९४ इससे क्या होता है ?
मतगयन्द । है जो भवि होय महाव्रतधारक, या सु अनुव्रतकारक कोई ।
या परकारसों जो परमातम, जानिके ध्यावत है थिर होई ॥ है सो सुविशुद्ध सुभाव अराधक, मोहकी गांठि खपावत सोई । हैं ग्रंथनिको सब मंथनिकै, निरग्रंथ कथ्यौ रससार इतोई ॥११५॥ (५०) गाथा-१९५ मोहग्रन्थी टूटनेसे क्या-क्या होता है? _
मनहर । । अनादिकी मोह दुखुद्धिमई गांठि ताहि,
जाने दूर किया. निज भेदज्ञान चलने । ऐसो होत संत वह इन्द्रिनिके सुख दुख,
सम नानि न्यारे रहै तिनके विकलते ॥ सोई महाभाग मुनिराजकी अवस्थामाहिं,
राग दोष भावको विनाशै मूल थलने । पावै सो अखंड अतिइन्द्रिय अनंत सुख, . ____एक रस वृन्दावन रहै सो अचलते ॥११६॥ (५१) गाथा-सुध्यानसे अशुद्धता नहीं आती। मोहरूप मैलको खिपावै मेदज्ञानी जीव,
इन्द्रिनिके विषैसों विरागता सु पुरी है । मनको निरोधिके सुभावमें सुथिर होत,
जहां शुद्ध चेतनाकी ज्ञानजोत फुरी है ।। सोई चिनमूरत चिदातमाको ध्याता जानो,
पर वस्तुसे भी जाकी प्रीति रीति दुरी है।