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कविवर घृन्दावन विरचित
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एक अनू इक अंशजुन, दुतिय तीनजुत होय । जदपि जोग है बंधके, तदपि बंधैं नहिं सोय । ४३॥ एक अंश अति जघन है, सो नहिं बंधै कदाप । नेमरूप यह कथन है, श्रीजिन भापी आप ॥१४॥ (२१) गाथा-१६६ वही नियम ।
मनहरण । चीकन सुभाव दोय अंश परनई अनू,
ताको बंध चार अंशवालीहीसों होत है । और जो रुग्वाई तीन अंश अनू धारे होय,
पंच अंशवालीसेती बाको बंध होत है । ऐसे ही अनंत लगु भेद सम विषमके,
दोय अंश अधिकतै बंधको उदोत है । रुच्छचीकनीहू बँधै खधहूसों खंध बँधै, याही रीतिसेती लखें ज्ञानी ज्ञान जोत है ॥४५||
दोहा। चीकनकी सम अंशतै, विषम अंशतै रुच्छ । दोय अधिक होतें बँधैं, पुग्गलानुके गुच्छ ॥४६॥ चीकनता गुनकी अनू, पांच अंशजुत जौन । सात अंश चीकन मिलै, बंध होतु है तौन ॥४७॥ चार अंशत्रुत रुच्छसों, षट जुतसों बँध जात । यही भांति अनंत लगु, जानों भेद विख्यात ॥४८॥ दोय अनू अंशनि गिनें, होहिं बराबरं जेह । ताको बँध बँधै नहीं; यों जिनवैन · भनेह ॥४९॥ . .