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प्रवचनसार
प्रवचनसार
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(२८) गाथा-१७३ आत्माके अमूर्त-मूर्तका अभाव है
तो बंध कैसे?
मनहरण । मूरतीक रूप आदि गुनको धरैया यह,
पुग्गल दरवसों फरस आदिवानसों । आपुसमें वं नाना भांति परमानू खंध,
सो तो हम जानी सरधानी परमानसों ॥ तासों विपरीत जो अमूरत चिदातमा सो,
कैसे बधै पुग्गल दग्व मूर्तिनानसों । यह तो अचंभौ मोहि ऐसो प्रतिभा वृन्द,
अमल मिलाप ज्यों "नितंब जु कानमों" ||६८॥ (२९) गाथा-१७४ आत्माके अमूतत्व होने पर भी इस
प्रकार बंध होता है। रूपादिक जे हैं मूरतीक गुन पुग्गलके,
तिनसों रहित जीव सर्वथा प्रमानसों । ऐसो है तथापि वह अन्यरूर होत नाहि,
आपनी सुसत्तामें विराजे परधानसों ॥ सर्व दर्व सदा निज दर्वित आकार धरे,
काहूको आकार कभी मिलै नाहिं आनसों । तैसे ही अरूपी चिदाकार वन्द आतमा है,
ताके अब सुनो जैसे वैधत विधानसौ ॥६९ ॥ रूपी दर्व घटपट आदिक अनेक तथा,
ताके गुनपरजाय विविध वितानसों ।
नार