________________
प्रवचनसार
[ ११९
सो है वह दर्वके सरूपकी विशेषताई, .
जुदो कछु वस्तु नाहिं ऐसे परमाना है । मूरतीक दरवको लच्छन हू मूरतीक,
__ अमरतिवंतनिको अमूरत वाना है । लच्छके जनायवेतै लच्छन कहावै वृन्द, प्रदेशते एकमेक सिद्ध ठहराना है ॥ ८ ॥
लक्षण यथा-दोहा। मिली परस्पर वस्तुको, जाकरि लखिये मिन्न । लच्छन ताहीको कहत, न्यायमती परविन्न ॥९॥ जो सुकीय नित दरवके, है अधार निरवाध । सोई गुन कहलावई, वर्जित दोष उपाध ॥ १० ॥ तेई दरवनिके सुगुन, लच्छन नाम कहाहि । जाते तिनकरि जानिये, लच्छ दरव सब ठाहिं ॥११॥ मेद विवच्छातें कहे, गुनी सुगुनमें भेद । वस्तु विचारत एक है, ज्ञानी लखत अखेद ।। १२ ।। (५) गाथा-१३१ मूर्त-अमूर्त गुण वे किन द्रव्योंमें हैं।
छप्पय । मूरतीक गुनगन इंद्रिनिके, गहन जोग है । सो वह पुग्गल दरबमई, निहचे प्रयोग है ॥ वरन गंध रस फांस, आदि बहु भेद तासके । अब सुनि मेद अमूरत, दरवनिके प्रकाशके ।।
१ प्रवीण = चतुर ।