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प्रवचनसार
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दोहा । लोकाकाश प्रदेश प्रति, कालानू परिपूर । हैं असंख निरवाध नित, मिलन शकति दूर ।। ६४ ॥ ताही एक प्रदेशतें, जब पुदगल परमानु । चलै मंदगति दुतियपर, तब सो समय बखान ॥ ६५ ॥ याही समय प्रमानकरि, है धुव वय उतपाद । वरतमान सब दरवमें, विवहारिक मरजाद ॥६६॥ (१३) गाथा-१३९ उनके द्रव्य और पर्याय ।
मनहरण । एक कालअनूतँ दुतीय कालअनूपर,
जात नवे पुग्गलानु मंदगति करिकै । तामें नो विलंब होत सोई काल दरवको,
समै नाम परजाय जानो भर्म हरिकै ॥ ताके पुल परे जो पदारथ हैं नितभूत,
सोई काल दरव है धौव धर्म धरिकै । समय परजाय उतपाद १५९५ कहे,
ऐसे सरधान करो शंका परिहरिकै ॥ ६७ ॥
. दोहा । जो अखंड ब्रहमंडवत, काल दरवहू होत । समय नाम परजाय तब, कबहुं न होत उदोत ॥ ६८ ॥ मिन्न-भिन्न कालानु जब, अमिल सु....भी होय । गनितरीतिगत कर्ममें, तब ही बनै बनोय ॥ ६९ ॥