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________________ प्रवचनसार [११७ अथ पंचमोविशेषज्ञेयतत्त्वाधिकारः। मंगलाचरण-दोहा । वंदों आतम जो त्रिविध, वर्जित कर्मविकार । नेत मेत ज्ञातृत्व जुत, सब विधि मंगलकार ॥१॥ अब विशेषता दरखका, कथनरूप अधिकार । श्रीगुरु करत अरंभ सो, नैवंतो सुखकार ॥ २ ॥ (१) गाथा-१२७ द्रव्य विशेपोंके भेद । मनहरण । सत्तारूप दर्व दोय भांति है अनादि सिद्ध, जीव औ अजीव यही साधी श्रुति मंथ है । तामें जीव लच्छन विलच्छन है चेतनता, .. जासको प्रकाश अविनाशी पूंज पंथ है। ताहीको प्रवाह ज्ञान दर्शनोपयोग दोय, । सामान्य विशेष वस्तु जानिवतें कंथ है। पुग्गलप्रमुख दर्व अजीव अचेतन हैं, ऐसे वृन्द भापी कुन्दकुन्द निरगंथ है ॥ ३ ॥ (२) गाथा-१२८ आकाश एक उसके दो भेद । . छप्पय । जो नभको परदेश नीव, पुदगल समेत है । धर्माधर्म सु अस्तिकाय,-को जो निकेत है ॥ कालानूजुत पंच दरव, परिपूरन जामें । सोई लोकाकाश जानु, संशय नहिं या ॥
SR No.010769
Book TitlePravachansar Parmagam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherDulichand Jain Granthmala
Publication Year1974
Total Pages254
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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