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कविवर वृन्दावन विरचित
1 (३३) गाथा-१२५ ज्ञान, कर्म और कर्मफलका स्वरूप । परिनाम आतमीक आप यह आतना है,
सदा बाल एकाई तानों दवाकार है। सोई परिनाम ज्ञान कर्म कर्नफल तीनों,
चेतनता होनको सनस्य उदार है। याही एकताईते ज्ञान कर्न कर्मफल.
तीनोंरूप आतमा ही जानो निखार है। अमेद विवच्चात दरवहीक अंतरनें,
मेव सर्व लीन होत मापी गनधार है ॥ ११४ ॥
(३४) गाथा-१२६ उसका ठीक निश्चयवाला होकर
अन्यथा न परिणमन करे तो शुद्ध आत्माको प्राप्त करता है।
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करता करन तथा करम करमफल,
चारोंरूप आतना विराज तिहुँपनमें । ऐसे जिन निह कियो है भलीभांतिकरि,
एकता मुभाव अनुभवें आपु मनमें ॥ परवरूप न प्रनवे काहू कालमाहि,
लागी है लगन बाकी आत्मीक धननें । सोई मुनि परम धरम शिवमुख लहै,
वृन्दावन कबहूँ न आवे भक्वनमें ॥ ११५ ॥
१. गपवरदेवने । २. करण!