SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 99
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रवचनसार [ ९१ तिहूँकालमें जासको, बाधा लगै न कोय । सोई सतलच्छन प्रबल, सब दरवनिमें होय ॥२६॥ (६) गाथा-९८ किसी द्रव्य से अन्य द्रव्यकी उत्पत्ति नहीं और द्रव्यसे अस्तित्व कोई पृथक् नहीं है । __ मनहरण । अपने सुभावहीसों स्वयंसिद्ध द्रव्य नित, निजाधार निजगुणपरजको मूल है । सोई है सत्तास्वरूप ऐसे जिनभूप कयौ, तत्त्वभूत वस्तुको स्वभाव अनुकूल है ॥ द्रव्यको स्वभावरूप सत्ता गुन 'वृन्दावन', प्रदेशते मेद नाहिं दोऊ समतुल है । आगम प्रमान जो न कर सरधान याको, सोई परसमयी मिथ्याती ताकी भूल है ॥२७॥ दोहा । जदपि जीव पुदगल मिले, उपजहिं बहु परजाय । तदपि न नूतन दरवकी, उतपति वरनी जाय ॥२८॥ मनहरण। द्रव्य गुनखान तामें सत्ता गुन है प्रधान, गुनी-गुनको यहाँ प्रदेशभेद नाहीं है। . संज्ञा संख्या लच्छन प्रयोजन” द्रव्यमाहिं, कथंचित भेद पै न सर्वथा कहाहीं है ॥ VINA
SR No.010769
Book TitlePravachansar Parmagam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherDulichand Jain Granthmala
Publication Year1974
Total Pages254
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy