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________________ ९२ ] कविवर वृन्दावन विरचित दंडके धरेतें जैसे दंडी तैसे यहां नाहिं, ___ यहां तो स्वरूपते अभेद ठहराही है । दर्वको सुभाव है अनंत गुनपर्जवंत, ___ताको सांचो ज्ञान भेदज्ञानी वृन्दपाही है ॥ २९ ॥ जब परजायद्वार दरव विलोकिये तो, ____ गुनी गुन भेदनिकी उठत तरंग है ॥ और जब दर्वदिष्ट देखिये तो गुनीगुन, भेदभाव डूबै रहै एक रस रंग है ॥ जैसे सिन्धुमाहिं भेद जद्दपि कलोलिनितें, निहचै निहारै वारि सिंधुहीको अंग है । तैसे दोनों नैनके समान दोनों नयननितें, वस्तुको न देखै सोई मिथ्याती कुढंग है ॥ ३० ॥ (७).गाथा-९९ उत्पाद-व्यय-ध्रौव्यात्मक होने पर भी द्रव्य 'सत्' है। अपने सुभावपरनतिविधै सदाकाल, तिष्ठतु है सत्तारूप वस्तु सोई दर्व है। द्रव्यको जो गुनपरजायवि. परिनाम, निश्चैकरि ताहीको स्वभाव नाम सर्व है ॥ सोई धुव-उतपाद-वय इन भावनित, ___ सदा सनबंधजुत राजत सुपर्व है। ऐसी एकताई कुन्दकुन्दजी बताई वृन्द, ___ वन्दतु है तिन्हैं सदा त्यागि उर गर्व है ॥३१॥
SR No.010769
Book TitlePravachansar Parmagam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherDulichand Jain Granthmala
Publication Year1974
Total Pages254
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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