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पवचनसार
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नते जो उनग्न मोई । बोई नाश मोई उतपन है । ओ उनपर कम है धुव मेई । जो धुव सो उनपत व्यय होई ॥१०॥
मनहरण । से 'मृपिटको विनाम 'कंग उनपात,
दोनों परजाय भरे दर्य 'धुव देखिये । पिना पाडाय पहूँ दर्व नादि सरवथा,
दस मिना पाजाय हुन हूँ पेखिये ॥ तति उनादादि म्वरूप दर्व आपही है,
स्वयंसिद्ध भलीभांति सिद्ध होत लेन्विये । यामें एक एक ग म लन्छ दोष लगे, चन्दावन तात त्रिधा लच्छन परेखिये ॥४१॥
पट्पद । केवल ही उनपाद कहैं. दो दूपन गा । उपादान काग्न-विहीन, घट कर्म न छाजे ।। प्रौव्य यन्तु विनु जो मूरख, उतपाद बताये।
सो अकागके फूल, बांझमुन मौर बनात्र ।। जो केवल ही वय मानिये, नौ उत्पति विनु नास किमि । पुनि धौव्यवस्नक नासन, ज्ञानादिक गुन नास तिमि ।। ४२ ॥
जो केवल धुद ही प्रमान, इक पच्छ मानिये । तो दो दुपन ताममाहिं, परन्तच्छ जानिय ।। प्रथम नास पाजाय, घरमको नाश होत है । बिनु परजाय न दरव, कहूं निहच उदोत है ।
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१. पय काम। २. मिट्टीगा पिंट। ३. घमा।