________________
प्रवचनसार
असे आम हरित चरन गुण त्याग सोई,
पीत गुण आप ही मुभावसों लहत है । धौवरूप आम दोड दशामाह वृन्दावन,
तैसे दर्व सदा त्रिया लच्छन लहत है ॥ ५४॥ (१३) गाथा-१०५ सत्ता और द्रव्यमें पृथक्त्व नहीं ।
छप्पय । जो यह दरव न होय, आपु सत्ताको धारक । तौ तामें धुवभाव, कहा आवै थितिकारक || जो धुवता नहिं धरै, कहो तब दरव होय किमि । तात सत्तारूर दरव, स्वयमेव आयु इमि ॥ है दरव गुनी सत्ता मुगुन, सदा एकता भाव धरि । परदेश मेद इनमें नहीं, यो भवि वृन्द प्रतीत करि ॥५५॥ (१४) गाथा-१०६ पृथक्त्व और अन्यत्वका लक्षण ।
___ मनहरण । जहाँ पादेशकी जुदागीरूर भेद सो तौ,
प्रविभक्त जानों जथा दंडी दंडवान है। संज्ञा लच्छनादित दरव सत्तामाहिं भेद,
वीरस्वामी ताको नाम अन्यत्व बखान है ।। अन्यके अधार तो अनंत गुन तामें एक,
सत्ताहू वसत सु विशेषन प्रमान है। सत्तामाहिं नाहिं और गुनको निवास वृन्द,
ऐसे द्रव्य सत्तामें विभेद ठहरान है ॥५६॥