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कविवर वृन्दावन विरचित
दंडके धरेतें जैसे दंडी तैसे यहां नाहिं, ___ यहां तो स्वरूपते अभेद ठहराही है । दर्वको सुभाव है अनंत गुनपर्जवंत, ___ताको सांचो ज्ञान भेदज्ञानी वृन्दपाही है ॥ २९ ॥ जब परजायद्वार दरव विलोकिये तो, ____ गुनी गुन भेदनिकी उठत तरंग है ॥ और जब दर्वदिष्ट देखिये तो गुनीगुन,
भेदभाव डूबै रहै एक रस रंग है ॥ जैसे सिन्धुमाहिं भेद जद्दपि कलोलिनितें,
निहचै निहारै वारि सिंधुहीको अंग है । तैसे दोनों नैनके समान दोनों नयननितें,
वस्तुको न देखै सोई मिथ्याती कुढंग है ॥ ३० ॥
(७).गाथा-९९ उत्पाद-व्यय-ध्रौव्यात्मक होने पर
भी द्रव्य 'सत्' है। अपने सुभावपरनतिविधै सदाकाल,
तिष्ठतु है सत्तारूप वस्तु सोई दर्व है। द्रव्यको जो गुनपरजायवि. परिनाम,
निश्चैकरि ताहीको स्वभाव नाम सर्व है ॥ सोई धुव-उतपाद-वय इन भावनित, ___ सदा सनबंधजुत राजत सुपर्व है। ऐसी एकताई कुन्दकुन्दजी बताई वृन्द, ___ वन्दतु है तिन्हैं सदा त्यागि उर गर्व है ॥३१॥