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प्रवचनसार
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सो जन वस्तु परोच्छ तथा, सूच्छिम नहिं जाने । मतिज्ञानीकी यही शकति, जिनदेव बखाने ॥ १८३ ॥
मनहरण । इन्द्रिनके विषय जे विराजत हैं थूलरूप,
तिनसों मिलाप जब होय तब जाने हैं। अवग्रह ईहा औ अवाय धारणादि लिये,
क्रमसों विकल्पकरि ठीकता सो माने हैं ॥ . भूतभावी परजै प्रमान औ अरूपी वस्तु,
इन्द्रिनतें सर्व ये अगोचर प्रमाने हैं। जातें इन गच्छिनिको अच्छतें न ज्ञान होत,
ताहीसेती अच्छज्ञान तुच्छ ठहराने है ॥ १८४ ।।
(४१) अतीन्द्रिय ज्ञानकी महानता । अप्रदेशी कालानु प्रदेशी पंच अस्तिकाय,
मूरतीक पुग्गल अमूरतीक पांच है । तिनके अनागत अतीत परजाय भेद,
नाना भेद लिये निज निज थल माच है ।। सर्वको प्रतच्छ एक समैहीमें जाने स्वच्छ,
अतीन्द्रियज्ञान सोई महिमा अवाच है । वारबार बंदत पदारविंदताको वृन्द, जाको पद, जानेंतें न नाचै कर्मनाच है ॥ १८५॥
सर्वया छन्द । इन्द्रियजनित ज्ञानहीने जे, मतवाले माने सरवज्ञ । सो तौ प्रगट विरोध बात है, पच्छ छांडि परखौ किन तज्ञ ॥