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कविवर वृन्दावन विरचित
ऐसे द्रव्य गुन परजाय अरहंतजूको, .
प्रथम अपाने. मनमाहिं अवधारै है । पीछे निज आतमको ताही भांति जानिकै, ___ अभेदरूप अनुभव दशा विसतारै है ॥ त्रिकालके जेते परजाय गुन आतमाके,
तेते एके कालमाहिं ध्यावत उदौर है । ऐसे जब ध्याता होय ध्यावै निज आतमाको,
वृन्दावन सोई मोह कर्मको विदारै है ॥२५ ।। जैसे कोऊ मोतिनिको हार उर धोरै ताको, ___ भेद छांडि शोभाको अभेद सुख लेत है । तैसे अरहंतके समान जान आपरूप, __ अभेद सरूप अनुभवत सचेत है ॥ चेतना परजके प्रवाहतें अभेद ध्यावे,
तथा चित्प्रकाशगुनहको गोपि देत है ॥ केवल अभेद आतमीक सुख वेदै तहां,
करता करम क्रिया भेद न धरेत है ॥२६॥ जैसें चोखे रत्नको अकप निर्मल प्रकाश,
तैसे चित्प्रकाश तहाँ निश्चल लहत है। जब ऐसी होत है अवस्था तब भेद छेद,
चेतनता मात्र ही सुभावको गहत है ॥ मोह अंधकार तहां रहै कौनके अधार, ___ भानुको उजास तथा तिमिर दहत है । यही है उपाय मोह बाहिनीके जीतिबेको,
वृन्दावन ताको शरनागत चहत है ॥२७॥