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कविवर वृन्दावन विरचित
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(३) गाथा-९५ द्रव्यका लक्षण ।
काव्य । जो स्वभाव नहिं तजै, सदा अस्तित्व गहै है ।
औ उतपत व्यय ध्रौव्य,-सहित सब काल रहै है ॥ पुनि अनंतगुणरूप, तथा जो परज नई है । . ताहीको गुरुदेव, दरव यह नाम दई है ॥ १४ ॥
सोरठा । गुन है दोय प्रकार, इक सामान्य विशेष इकं । मुनि समुझो निरधार, सरधा धरि भवदधि तरो ॥ १५ ॥
मनहरण । अस्ति नास्ति एकानेक दम्वत्त परजवत्त,
सर्वासर्वगत सप्रदेशी अप्रदेशी है। मूरत-अमूरत सक्रिया औ अक्रियावान,
चेतन-अचेतन सकर्ता-कर्ता तेसी है ।। भोगता-अभोगता अगुरुलघु ए समान,
दनिके गुन वृन्द गुरु उपदेशी है । अवगाह गति थिति वर्तना मूरतवंत, चेतनता गुन कहे लच्छन विशेषी है ॥ १६ ॥
दोहा। दरवनिके अरु गुननिके, परनतिके जे भेद । , सो परजाय कहावई, समुझो भवि भ्रमछेद ॥ १७ ॥
मनहरण उत्पाद-व्यय धुव गुन' परजाय यही, . . ..लच्छनको धेरै द्रव्य लच्छ नाम पावै है।
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