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________________ ८८ 1 कविवर वृन्दावन विरचित D - www (३) गाथा-९५ द्रव्यका लक्षण । काव्य । जो स्वभाव नहिं तजै, सदा अस्तित्व गहै है । औ उतपत व्यय ध्रौव्य,-सहित सब काल रहै है ॥ पुनि अनंतगुणरूप, तथा जो परज नई है । . ताहीको गुरुदेव, दरव यह नाम दई है ॥ १४ ॥ सोरठा । गुन है दोय प्रकार, इक सामान्य विशेष इकं । मुनि समुझो निरधार, सरधा धरि भवदधि तरो ॥ १५ ॥ मनहरण । अस्ति नास्ति एकानेक दम्वत्त परजवत्त, सर्वासर्वगत सप्रदेशी अप्रदेशी है। मूरत-अमूरत सक्रिया औ अक्रियावान, चेतन-अचेतन सकर्ता-कर्ता तेसी है ।। भोगता-अभोगता अगुरुलघु ए समान, दनिके गुन वृन्द गुरु उपदेशी है । अवगाह गति थिति वर्तना मूरतवंत, चेतनता गुन कहे लच्छन विशेषी है ॥ १६ ॥ दोहा। दरवनिके अरु गुननिके, परनतिके जे भेद । , सो परजाय कहावई, समुझो भवि भ्रमछेद ॥ १७ ॥ मनहरण उत्पाद-व्यय धुव गुन' परजाय यही, . . ..लच्छनको धेरै द्रव्य लच्छ नाम पावै है। MAHA.A4.. AMMAN AO
SR No.010769
Book TitlePravachansar Parmagam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherDulichand Jain Granthmala
Publication Year1974
Total Pages254
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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