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प्रवचनसार .
प्रवचनसार
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__ मनहरण । प्रभा और उष्ण तथा देवपद, तीनों ही विशेषनिको ,धेरै मारतंड है । तैसे परमातममें सुपरप्रकाशक,
अनंतशक्ति चेतन सो ज्ञानगुनमंड है ॥ तथा आतमीक तृप्ति अनाकुल थिरतासों,
सहज सुभाव सुखसुधाको, उमंड है। आतमानुभवीके सुभाव शिलामाहिं सो, उकीरमान, जक्तपूज्य देवता अखंड है ॥१०॥
दोहा । अतिइन्द्री सुखको परम, पूरन भयो विधान । कुन्दकुन्द मुनिको करत, वृन्दावन नित ध्यान ॥४१॥ इति श्रीमत्कुन्दकुन्दाचार्यकृत परमागम श्रीप्रवचनसारजीकी
वृन्दावनकृतभाषामें दूसरा सुखअधिकार पूर्ण भया ।
१ संवत् १९०५ कार्तिक शुक्ला ५ बुधवासरे । १ १ ऐसा ही ख प्रतिमें है।