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प्रवचनसार
प्रवचनसार
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जैसे ततकाल वर्तमानको विलोकै ज्ञान, .. तैसे भगवान अविलोक महाराजै हैं। भूतभावी वस्तु चित्रपटमें निहारें जैसे, गहै ज्ञान ताको तैसे तहां भ्रम भाजें हैं ॥१६७।
दोहा । .. वर्तमानके. ज्ञेयको, जो · जानत है ज्ञान । तामें तो शंका नहीं, देखत प्रगट प्रमान ॥१६८॥ भूत भविण्यत पर्ज तो, है ही नाही मित्त ! तब ताको कैसे लखै, यह भ्रम उपजत चित्त -॥ १६९॥ • वाल अवस्थाकी कथा, जब उर करिये याद । तब प्रतच्छवत होत सव, यामें नाहिं विवाद ॥ १७०॥ . अथवा भावी वस्तु जे, वेदविदित सवं ठौर । . तिनहिं विचारत ज्ञान तहँ, होत तदाकृति दौर ॥१७१॥ बाहूबलि भरतादि जे, ऽतीत पुरुष परधान। . अथवा श्रेणिक आदि जे, होनहार भगवान ॥ १७२ ॥ तिनको चित्र विलोकतै, ऐसो उपजत ज्ञान । ' . जैसे ज्ञेय प्रतच्छको, जानत ज्ञान महान। १७३ । छंदमस्थनिके ज्ञानकी, जहँ ऐसी गति होय । जानहिं भूत भविष्यको, वर्तमानवत · सोय ॥ १७४ ॥ तव जिनके आवरनको, भयौ सरवथा नाश । प्रगट्यो ज्ञान अनंतगत, सहजः शुद्ध परकाश ॥१७५॥ तिनके भूत भविष्यं जे, 'परजै भेद अनंत । छहों दरवके लखनमें, शंका ' कहा रहंत ॥१७६।।