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प्रवचनसार
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(५१) सर्वज्ञ ज्ञानकी महिमा
मनहरण । तिहूँकालमाहिं नित विषम पदारथ जे, ____सर्व सर्वलोकमें विराजे नाना रूप है। एकै बार जानै फेरि छाँडै नाहिं संग ताको, ___ 'संगकी सी रेखा तथा सदा संगभूप है ॥ अमल अचल अविनाशी ज्ञानपरकाश,
सहज सुभाविक सुधारसको कूप है। श्री जिनिंददेवजूके ज्ञान गुन छायककी, ___ अहो भविवृन्द यह महिमा अनूप है ॥ २२४ ॥
कोऊ मूरतीक कोऊ मूरतिरहित द्रव्य, ___ काहुके न काय कोऊ द्रव्य कायवंत है । कोऊ जरूप कोऊ चिदानंदरूप याते, __सर्व दर्व सम नाहिं विषम भनंत है ॥ तिनके त्रिकालके अनंत गुनपरजाय,
नित्यानित्यरूप जे विचित्रता धरंत है । सर्वको प्रतच्छ एक समैमें ही जाने ऐसे ___ ज्ञानगुन छायककी महिमा अनंत है ॥ २२५॥
सर्वज्ञतारूप ज्ञप्तिक्रिया होने पर भी वन्धनका अभाव
मनहरण । शुद्ध ज्ञानरूप सरवंग जिनभूप आप,
सहज-सुभाव-सुखसिंधुमें मगन है ॥ १. पत्यरकी रेखा। ।