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આચાર્યશ્રી યશોદેવસૂરિજી લિખિત
સંવચ્છરી પ્રતિક્રમણતી સરલ વિધિતી પ્રસ્તાવતા–હિન્દી
वि. सं. 2039
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हिन्दी के प्रथम संस्करण में से उद्धृत
सम्पादकीय निवेदन
छ.सन् १८७५
अनेक चित्रों से युक्त विधि सहित संवच्छरी प्रतिक्रमण की पुस्तिका की गुजराती में दो वर्ष में चार आवृत्तियाँ प्रकाशित हो गई। यह पुस्तिका राजस्थानी भाइयों के देखने में आई । उसे देखकर उन्होंने कहा कि हमको गुजराती भाषा में यह पुस्तिका पढ़ने में तकलीफ होती है। यदि आप इस पुस्तिका को हिन्दी में प्रकाशित करावें तो हम पर बड़ा उपकार होगा । मैं तो इसका हिन्दी भाषान्तर कराने वाला था ही, लेकिन संयोग की सानुकूलता हो तभी यह काम हो सकता है, ऐसा मैंने कहा ।
किसी ने ऐसी टकोर की कि 'गुजराती साधु गुजरातीयों के लिये ही करते हैं, हमारे लिए नहीं' मैंने कहा- ऐसा तो नहीं है, मेरी इच्छा तो जैन साहित्य का प्रकाशन अनेक भाषाओं में हो ऐसी है, लेकिन मैं गुजराती हूँ इस वास्ते पहला लेखन गुजराती में ही हो सकता हे, फिर हिन्दी आदि अन्य भाषाओं में ।
लेकिन मेरी शिकायत यह है कि मैंने दो चार सुज्ञ राजस्थानी भाइयों से कहा कि " आप लोग अहमदाबाद में 'सस्ता साहित्यवर्धक' जैसी संस्था की स्थापना क्यों नहीं करते ? श्रीमन्त - लक्ष्मी - सम्पन्न राजस्थानी क्या नहीं कर सकते हैं! धार्मिक पुस्तक प्रकाशन के लिये संस्था की स्थापना कीजिए। उत्साही कार्यकर्ताओं को रखिये और योग्य गुजराती पुस्तक का